प्राचीन जम्बूद्वीप से लेकर आज का हिन्दुस्तान संपूर्ण क्षेत्र पहले हिन्दुओं का स्थान था। जहां तक प्राचीन भारतवर्ष का संबंध है तो इसकी सीमाएं हिन्दुकुश से लेकर अरुणाचल, कश्मीर से कन्याकुमारी तक और एक ओर एक ओर जहां पूर्व में अरुणाचल से लेकर इंडोनेशिया तक और पश्चिम में हिन्दुकुश से लेकर अरब की खाड़ी तक फैली थीं। लेकिन समय और संघर्ष के चलते अब भारत 'इंडिया' बन गया है। कैसे और क्यों? यह बड़ा सवाल है।
भारत के 13 बड़े संग्राम, जिनसे बदल गया हिन्दुस्थान
Number 1 ----
ऐसा माना जाता है कि प्राचीनकाल में देवता और असुरों के बीच युद्ध होता था। एक और जहां देवताओं की राजधानी को इंद्रलोक कहा जाता था तो दूसरी ओर असुरों की राजधानी पाताल में थी। हिमालय के किसी क्षेत्र में इंद्रलोक हुआ करता था। हर कोई इंद्र पद पर बैठना चाहता था। संपूर्ण भारतवर्ष पर देव संस्कृति का ही शासन था। देवता और असुरों में 12 बार संपूर्ण धरती पर शासन को लेकर युद्ध हुआ जिसे देवासुर संग्राम कहा जाता है। इंद्र एक पद था, किसी देवता का नाम नहीं। द्वापर युग तक इतने देव इंद्र पद पर बैठ चुके हैं- यज्न, विपस्चित, शीबि, विधु, मनोजव, पुरंदर, बाली, अद्भुत, शांति, विश, रितुधाम, देवास्पति और सुचि। हालांकि देवताओं के अधिपति को हराने वाले बहुत हुए हैं जैसे मेघनाद, रावण आदि। देवासुर संग्रामों का परिणाम यह रहा कि असुरों और सुरों ने धरती पर भिन्न-भिन्न संस्कृतियों और धर्मों को जन्म दिया और धरती को आपस में बांट लिया। इन संघर्षों में देवता हमेशा कमजोर ही सिद्ध हुए और असुर ताकतवर।
इस दौर में हैहय-परशुराम के बीच युद्ध की चर्चा मिलती है। इसके बाद राम-रावण युद्ध हुआ। राम के जन्म को हुए 7,129 वर्ष हो चुके हैं। राम का जन्म 5,114 ईस्वी पूर्व हुआ था। राम और रावण का युद्ध 5076 ईसा पूर्व हुआ था यानी आज से 7090 वर्ष पूर्व। तब भगवान राम 38 वर्ष के थे। यह युद्ध 72 दिन चला था।
राम-रावण युद्ध के बाद दसराज्य का युद्ध हुआ। इस युद्ध की चर्चा ऋग्वेद में मिलती है। यह रामायणकाल की बात है। दसराज्य युद्ध त्रेतायुग के अंत में लड़ा गया। माना जाता है कि राम-रावण युद्ध के 150 वर्ष बाद यह युद्ध हुआ था। ऋग्वेद के 7वें मंडल में इस युद्ध का वर्णन मिलता है।
दसराज्य युद्ध के बाद सबसे बड़ा युद्ध हुआ महाभारत युद्ध। कुरुक्षेत्र में पांडवों और कौरवों के बीच आज से 5000 वर्ष पूर्व महाभारत युद्ध हुआ था। 18 दिन तक चले इस युद्ध में भगवान कृष्ण ने गीता का उपदेश अर्जुन को दिया था। कृष्ण का जन्म 3112 ईसा पूर्व (अर्थात आज से 5121 वर्ष पूर्व) हुआ। महाभारत का युद्ध 22 नवंबर 3067 ईसा पूर्व को हुआ था। उस वक्त भगवान कृष्ण 55-56 वर्ष के थे। इस युद्ध का सबसे भयानक परिणाम हुआ। धर्म और संस्कृति का लगभग नाश हो गया। लाखों लोग मारे गए, उसी तरह लाखों महिलाएं विधवाएं हो गईं और उतने ही अनाथ। बस यहीं से भारत की दशा और दिशा बदल गई। इस युद्ध के बाद अखंड भारत बिखरने लगा... नए धर्म और संस्कृतियों का जन्म होने लगा और धीरे-धीरे सब कुछ बदल गया। आओ जानते हैं ऐसे 10 युद्ध जिन्होंने अखंड भारत के नक्शे को बदलना शुरू कर दिया। भारत का भाग्य यहीं से बदलने लगा ।
चंद्रगुप्त-धनानंद युद्ध : चाणक्य के शिष्य चंद्रगुप्त मौर्य (322 से 298 ईपू तक) का धनानंद से जो युद्ध हुआ था उसने देश का इतिहास बदलकर रख दिया। प्राचीन भारत के 18 जनपदों में से एक था महाजनपद- मगध। मगध का राजा था धनानंद। इस युद्ध के बारे में सभी जानते हैं। चंद्रगुप्त ने उसके शासन को उखाड़ फेंका और मौर्य वंश की स्थापना की।
सम्राट अशोक-कलिंग युद्ध (261 ईसा पूर्व): चंद्रगुप्त मौर्य के काल में फिर से भारतवर्ष एक सूत्र में बंधा और इस काल में भारत ने हर क्षेत्र में प्रगति की। सम्राट अशोक (ईसा पूर्व 269-232) प्राचीन भारत के मौर्य सम्राट बिंदुसार का पुत्र और चंद्रगुप्त का पौत्र था जिसका जन्म लगभग 304 ई. पूर्व में माना जाता है। भाइयों के साथ गृहयुद्ध के बाद अशोक को राजगद्दी मिली।
उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर से 5 किलोमीटर दूर कलिंग युद्ध में हुए नरसंहार तथा विजित देश की जनता के कष्ट से अशोक की अंतरात्मा को तीव्र आघात पहुंचा। 260 ईपू में अशोक ने कलिंगवासियों पर आक्रमण किया तथा उन्हें पूरी तरह कुचलकर रख दिया। युद्ध की विनाशलीला ने सम्राट को शोकाकुल बना दिया और वे प्रायश्चित करने के प्रयत्न में बौद्ध धर्म अपनाकर भिक्षु बन गए। अशोक के भिक्षु बन जाने के बाद भारत के पतन की शुरुआत हुई और भारत फिर से धीरे-धीरे कई जनपदों और राज्यों में बंट गया।
मौर्य वं↺↺↺श के पतन के बाद दीर्घकाल तक भारत में राजनीतिक एकता स्थापित नहीं रही। कुषाण एवं सातवाहनों ने राजनीतिक एकता लाने का प्रयास किया। मौर्योत्तर काल के उपरांत तीसरी शताब्दी ई. में तीन राजवंशों का उदय हुआ जिसमें मध्यभारत में नाग शक्ति, दक्षिण में बाकाटक तथा पूर्वी में गुप्त वंश प्रमुख हैं। इन सभी में गुप्तकाल को भारत का स्वर्णकाल माना जाता है। गुप्तों ने अच्छे से शासन किया और भारत को बाहरी आक्रमण से बचाए रखा।
हर्षवर्धन (606 ई.-647 ई.) : इसके बाद अंत में एक महान राजा हुए हर्षवर्धन जिसने भारत के एक बहुत बड़े भू-भाग कर राज किया। उसी दौर में अरब में ह. मुहम्मद ने एक नए धर्म की स्थापना कर दी थी। हर्षवर्धन ने भारत को विदेशी आक्रमणकारियों से बचाए रखा। हर्ष ने लगभग 41 वर्ष शासन किया।
उपरोक्त और निम्नांकित लेख सामग्री इतिहास की पुस्तकों और अन्य कई स्रोतों से हासिल की गई है।
Number 2 -----
फारसी तथा यूनानियों का आक्रमण : भारत की उत्तर-पश्चिमी सीमा पर स्थित भारतीय राज्यों को फारस और यूनानी से हमेशा आक्रमण का खतरा बना रहता था। पहले यहां कंबोज, कैकेय, गांधार नामक छोटे-बड़े राज्य थे। भारत की उत्तर-पश्चिम सीमा की बात करें तो संपूर्ण अफगानिस्तान और ईरान के समुद्रवर्ती कुछ हिस्से थे। यहां हिन्दूकुश नाम का एक पहाड़ी क्षेत्र है जिसके उस पार कजाकिस्तान, रूस और चीन जाया जा सकता है। ईसा के 700 साल पूर्व तक यह स्थान आर्यों का था। ईसा पूर्व 700 साल पहले तक इसके उत्तरी क्षेत्र में गांधार महाजनपद था जिसके बारे में भारतीय स्रोत महाभारत तथा अन्य ग्रंथों में वर्णन मिलता है। महाभारत में कंबोज और गांधार के कई राजाओं का उल्लेख मिलता है। जिनमें कंबोज के सुदर्शन और चंद्रवर्मन मुख्य हैं।
अफगानिस्तान पहले था हिन्दू राष्ट्र
घुसपैठ : उक्त सीमावर्ती राज्यों में व्यापार के माध्यम से कई फारसी और यूनानियों ने अपने अड्डे बना लिए थे, दूसरी ओर अरबों ने भी समुद्री तटवर्ती क्षेत्र में अपने व्यापारिक ठिकाने बनाकर अपने लोगों की संख्या बढ़ा ली थी। अफगानिस्तान में पहले आर्यों के कबीले आबाद थे और वे सभी वैदिक धर्म का पालन करते थे, फिर बौद्ध धर्म के प्रचार के बाद यह स्थान बौद्धों का गढ़ बन गया। बामियान बौद्धों की राजधानी थी।
सिकंदर का आक्रमण : सिकंदर का जब आक्रमण (328 ईसा) हुआ, तब यहां फारस के हखामनी शाहों ने कब्जा कर रखा था। ईरान के पार्थियन तथा भारतीय शकों के बीच बंटने के बाद अफगानिस्तान के आज के भू-भाग पर बाद में सासानी शासन आया। इस तरह हखामनी ईरानी वंश के लोगों से सबसे पहले भारत पर आक्रमण किया। हालांकि यह आर्यों के ही वंशज थे।
सिकंदर और पोरस युद्ध (326 ईसा पूर्व) : भारत पर यूं तो छोटे-बड़े आक्रमण होते रहे लेकिन पहला बड़ा आक्रमण सिकंदर ने किया था। सिकंदर और पोरस के बीच हुए युद्ध में पोरस की जीत हुई थी। सिकंदर ने भारत के पश्चिमी छोर पर बसे पोरस के राज्य पर आक्रमण किया था। पोरस के राज्य के आसपास दो छोटे-छोटे राज्य थे- तक्षशिला और अम्भिसार। तक्षशिला, जहां का राजा अम्भी था और अम्भिसार का राज्य कश्मीर के चारों ओर फैला हुआ था। अम्भी का पुरु से पुराना बैर था इसलिए उसने सिकंदर से हाथ मिला लिया। अम्भिसार ने तटस्थ रहकर सिकंदर की राह आसान कर दी। दूसरी ओर धनानंद का राज्य था वह भी तटस्थ था। ऐसे में पोरस को अकेले ही लड़ना पड़ा।
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भारत के 13 बड़े संग्राम, जिनसे बदल गया हिन्दुस्थान
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ऐसा माना जाता है कि प्राचीनकाल में देवता और असुरों के बीच युद्ध होता था। एक और जहां देवताओं की राजधानी को इंद्रलोक कहा जाता था तो दूसरी ओर असुरों की राजधानी पाताल में थी। हिमालय के किसी क्षेत्र में इंद्रलोक हुआ करता था। हर कोई इंद्र पद पर बैठना चाहता था। संपूर्ण भारतवर्ष पर देव संस्कृति का ही शासन था। देवता और असुरों में 12 बार संपूर्ण धरती पर शासन को लेकर युद्ध हुआ जिसे देवासुर संग्राम कहा जाता है। इंद्र एक पद था, किसी देवता का नाम नहीं। द्वापर युग तक इतने देव इंद्र पद पर बैठ चुके हैं- यज्न, विपस्चित, शीबि, विधु, मनोजव, पुरंदर, बाली, अद्भुत, शांति, विश, रितुधाम, देवास्पति और सुचि। हालांकि देवताओं के अधिपति को हराने वाले बहुत हुए हैं जैसे मेघनाद, रावण आदि। देवासुर संग्रामों का परिणाम यह रहा कि असुरों और सुरों ने धरती पर भिन्न-भिन्न संस्कृतियों और धर्मों को जन्म दिया और धरती को आपस में बांट लिया। इन संघर्षों में देवता हमेशा कमजोर ही सिद्ध हुए और असुर ताकतवर।
इस दौर में हैहय-परशुराम के बीच युद्ध की चर्चा मिलती है। इसके बाद राम-रावण युद्ध हुआ। राम के जन्म को हुए 7,129 वर्ष हो चुके हैं। राम का जन्म 5,114 ईस्वी पूर्व हुआ था। राम और रावण का युद्ध 5076 ईसा पूर्व हुआ था यानी आज से 7090 वर्ष पूर्व। तब भगवान राम 38 वर्ष के थे। यह युद्ध 72 दिन चला था।
राम-रावण युद्ध के बाद दसराज्य का युद्ध हुआ। इस युद्ध की चर्चा ऋग्वेद में मिलती है। यह रामायणकाल की बात है। दसराज्य युद्ध त्रेतायुग के अंत में लड़ा गया। माना जाता है कि राम-रावण युद्ध के 150 वर्ष बाद यह युद्ध हुआ था। ऋग्वेद के 7वें मंडल में इस युद्ध का वर्णन मिलता है।
दसराज्य युद्ध के बाद सबसे बड़ा युद्ध हुआ महाभारत युद्ध। कुरुक्षेत्र में पांडवों और कौरवों के बीच आज से 5000 वर्ष पूर्व महाभारत युद्ध हुआ था। 18 दिन तक चले इस युद्ध में भगवान कृष्ण ने गीता का उपदेश अर्जुन को दिया था। कृष्ण का जन्म 3112 ईसा पूर्व (अर्थात आज से 5121 वर्ष पूर्व) हुआ। महाभारत का युद्ध 22 नवंबर 3067 ईसा पूर्व को हुआ था। उस वक्त भगवान कृष्ण 55-56 वर्ष के थे। इस युद्ध का सबसे भयानक परिणाम हुआ। धर्म और संस्कृति का लगभग नाश हो गया। लाखों लोग मारे गए, उसी तरह लाखों महिलाएं विधवाएं हो गईं और उतने ही अनाथ। बस यहीं से भारत की दशा और दिशा बदल गई। इस युद्ध के बाद अखंड भारत बिखरने लगा... नए धर्म और संस्कृतियों का जन्म होने लगा और धीरे-धीरे सब कुछ बदल गया। आओ जानते हैं ऐसे 10 युद्ध जिन्होंने अखंड भारत के नक्शे को बदलना शुरू कर दिया। भारत का भाग्य यहीं से बदलने लगा ।
चंद्रगुप्त-धनानंद युद्ध : चाणक्य के शिष्य चंद्रगुप्त मौर्य (322 से 298 ईपू तक) का धनानंद से जो युद्ध हुआ था उसने देश का इतिहास बदलकर रख दिया। प्राचीन भारत के 18 जनपदों में से एक था महाजनपद- मगध। मगध का राजा था धनानंद। इस युद्ध के बारे में सभी जानते हैं। चंद्रगुप्त ने उसके शासन को उखाड़ फेंका और मौर्य वंश की स्थापना की।
सम्राट अशोक-कलिंग युद्ध (261 ईसा पूर्व): चंद्रगुप्त मौर्य के काल में फिर से भारतवर्ष एक सूत्र में बंधा और इस काल में भारत ने हर क्षेत्र में प्रगति की। सम्राट अशोक (ईसा पूर्व 269-232) प्राचीन भारत के मौर्य सम्राट बिंदुसार का पुत्र और चंद्रगुप्त का पौत्र था जिसका जन्म लगभग 304 ई. पूर्व में माना जाता है। भाइयों के साथ गृहयुद्ध के बाद अशोक को राजगद्दी मिली।
उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर से 5 किलोमीटर दूर कलिंग युद्ध में हुए नरसंहार तथा विजित देश की जनता के कष्ट से अशोक की अंतरात्मा को तीव्र आघात पहुंचा। 260 ईपू में अशोक ने कलिंगवासियों पर आक्रमण किया तथा उन्हें पूरी तरह कुचलकर रख दिया। युद्ध की विनाशलीला ने सम्राट को शोकाकुल बना दिया और वे प्रायश्चित करने के प्रयत्न में बौद्ध धर्म अपनाकर भिक्षु बन गए। अशोक के भिक्षु बन जाने के बाद भारत के पतन की शुरुआत हुई और भारत फिर से धीरे-धीरे कई जनपदों और राज्यों में बंट गया।
मौर्य वं↺↺↺श के पतन के बाद दीर्घकाल तक भारत में राजनीतिक एकता स्थापित नहीं रही। कुषाण एवं सातवाहनों ने राजनीतिक एकता लाने का प्रयास किया। मौर्योत्तर काल के उपरांत तीसरी शताब्दी ई. में तीन राजवंशों का उदय हुआ जिसमें मध्यभारत में नाग शक्ति, दक्षिण में बाकाटक तथा पूर्वी में गुप्त वंश प्रमुख हैं। इन सभी में गुप्तकाल को भारत का स्वर्णकाल माना जाता है। गुप्तों ने अच्छे से शासन किया और भारत को बाहरी आक्रमण से बचाए रखा।
हर्षवर्धन (606 ई.-647 ई.) : इसके बाद अंत में एक महान राजा हुए हर्षवर्धन जिसने भारत के एक बहुत बड़े भू-भाग कर राज किया। उसी दौर में अरब में ह. मुहम्मद ने एक नए धर्म की स्थापना कर दी थी। हर्षवर्धन ने भारत को विदेशी आक्रमणकारियों से बचाए रखा। हर्ष ने लगभग 41 वर्ष शासन किया।
उपरोक्त और निम्नांकित लेख सामग्री इतिहास की पुस्तकों और अन्य कई स्रोतों से हासिल की गई है।
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फारसी तथा यूनानियों का आक्रमण : भारत की उत्तर-पश्चिमी सीमा पर स्थित भारतीय राज्यों को फारस और यूनानी से हमेशा आक्रमण का खतरा बना रहता था। पहले यहां कंबोज, कैकेय, गांधार नामक छोटे-बड़े राज्य थे। भारत की उत्तर-पश्चिम सीमा की बात करें तो संपूर्ण अफगानिस्तान और ईरान के समुद्रवर्ती कुछ हिस्से थे। यहां हिन्दूकुश नाम का एक पहाड़ी क्षेत्र है जिसके उस पार कजाकिस्तान, रूस और चीन जाया जा सकता है। ईसा के 700 साल पूर्व तक यह स्थान आर्यों का था। ईसा पूर्व 700 साल पहले तक इसके उत्तरी क्षेत्र में गांधार महाजनपद था जिसके बारे में भारतीय स्रोत महाभारत तथा अन्य ग्रंथों में वर्णन मिलता है। महाभारत में कंबोज और गांधार के कई राजाओं का उल्लेख मिलता है। जिनमें कंबोज के सुदर्शन और चंद्रवर्मन मुख्य हैं।
अफगानिस्तान पहले था हिन्दू राष्ट्र
घुसपैठ : उक्त सीमावर्ती राज्यों में व्यापार के माध्यम से कई फारसी और यूनानियों ने अपने अड्डे बना लिए थे, दूसरी ओर अरबों ने भी समुद्री तटवर्ती क्षेत्र में अपने व्यापारिक ठिकाने बनाकर अपने लोगों की संख्या बढ़ा ली थी। अफगानिस्तान में पहले आर्यों के कबीले आबाद थे और वे सभी वैदिक धर्म का पालन करते थे, फिर बौद्ध धर्म के प्रचार के बाद यह स्थान बौद्धों का गढ़ बन गया। बामियान बौद्धों की राजधानी थी।
सिकंदर का आक्रमण : सिकंदर का जब आक्रमण (328 ईसा) हुआ, तब यहां फारस के हखामनी शाहों ने कब्जा कर रखा था। ईरान के पार्थियन तथा भारतीय शकों के बीच बंटने के बाद अफगानिस्तान के आज के भू-भाग पर बाद में सासानी शासन आया। इस तरह हखामनी ईरानी वंश के लोगों से सबसे पहले भारत पर आक्रमण किया। हालांकि यह आर्यों के ही वंशज थे।
सिकंदर और पोरस युद्ध (326 ईसा पूर्व) : भारत पर यूं तो छोटे-बड़े आक्रमण होते रहे लेकिन पहला बड़ा आक्रमण सिकंदर ने किया था। सिकंदर और पोरस के बीच हुए युद्ध में पोरस की जीत हुई थी। सिकंदर ने भारत के पश्चिमी छोर पर बसे पोरस के राज्य पर आक्रमण किया था। पोरस के राज्य के आसपास दो छोटे-छोटे राज्य थे- तक्षशिला और अम्भिसार। तक्षशिला, जहां का राजा अम्भी था और अम्भिसार का राज्य कश्मीर के चारों ओर फैला हुआ था। अम्भी का पुरु से पुराना बैर था इसलिए उसने सिकंदर से हाथ मिला लिया। अम्भिसार ने तटस्थ रहकर सिकंदर की राह आसान कर दी। दूसरी ओर धनानंद का राज्य था वह भी तटस्थ था। ऐसे में पोरस को अकेले ही लड़ना पड़ा।
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