रविवार, 5 फ़रवरी 2017

कभी बेचती थी अख़बार आज IIT से पास होकर कर रही जॉब


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लड़कियां देश बदल रही है और अपने हालात भी। लड़कियां आज मनचलों का डटकर सामना कर रही हैं ये वहीं मनचले है जिनसे डरकर वो कभी नीची निगाह किए चुपचाप आंखों में आंसू लिए निकल जाती थी। आज उन्हीं मनचलों को उनकी आंखों में देखकर डर लगने लगता है। खैर हम बात यहां पर दबंग लड़कियों की नहीं कर रहे है। हम बात कर रहे है एक ऐसी लड़की की जो अपने हालातों से कभी नहीं हारी।
देश में गांव और शहर की कई लड़कियां पढ़ाई बीच में ही छोड़ देती है। कारण होता है कि स्कूल दूर है, पढ़ाई के लिए पैसे नहीं है या घरवालें पढ़ा नहीं रहे है। लेकिन जिस लड़की को पढ़ना होता है उसकी भी पढ़ाई अगर इन कारणों से बंद हो जाए तो उस लड़की के जीवन के लिए ये सबसे खराब बात होती है। इस बात को वो ज़िन्दगीभर भुला नहीं पाती।
अपनी ज़िन्दगी के कठिन हालातों से निपटने वाली इस लड़की है यूपी की शिवांगी। शिवांगी कानपुर से 60 किलोमीटर दूर देहा गांव की लड़की हैं और अभी नौकरी कर रही है। अब आप कहेंगे कि इसमें क्या ख़ास बात है हर कोई नौकरी करता हैं। तो हम आपको बता देते है कि इस लड़की मे क्या ख़ास बात हैं।

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दरअसल इस लड़की की कहानी को ‘सुपर 30’ के संस्थापक आनंद कुमार ने अपने फेसबुक पेज पर शेयर किया है। ये लड़की अपने पिता के साथ न्यूज़पेपर और मैग्जीन बेचा करती थी। इसके साथ ही वह सरकारी स्कूल से पढ़ाई भी कर रही थी। वह घर के काम भी संभालती थी। लेकिन इन सबसे जब भी उसे समय मिलता वो अपनी पढ़ाई करती थी।
एक दिन शिवांगी ने आनंद कुमार के सुपर 30 के बारे में पढ़ा। कुमार गरीब घर के छात्रों को आईआईटी पास कराने के लिए कोचिंग देते हैं। आनंद कुमार के बारे में पढ़ने के बाद शिवांगी अपने पापा के साथ उनसे मिलने गई। वहां पर शिवांगी का सिलेक्शन सुपर 30 में हो गया। इसके बाद शिवांगी ने आईआईटी पास किया और अब वे जॉब कर रही है।
शिवांगी की इस कहानी को शेयर करने के बाद इस पर जबरदस्त रिस्पॉन्स मिला है। उनकी इस पोस्ट को 9 हजार से ज़्यादा लोगों ने लाइक किया वहीं 1000 से ज़्यादा लोगों ने शेयर किया है। कमेंट में भी सभी ने इस लड़की की तारीफ की। इस पोस्ट पर आनंद कुमार ने लड़की के दो फोटो पोस्ट किए है। साथ ही अपना अनुभव भी साझा किया है।
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ये दो तस्वीरों की एक ही कहानी है। ये तस्वीरें आईना भी हैं और अश्क भी। इनमे कल भी है और आज भी। सुर भी साज भी। इन तस्वीरों में बीते कल की ख़ामोशी है और आज की बुलंदी भी। ये दोनों तस्वीरें मेरी शिष्या शिवांगी की है। एक उस समय कि जब शिवांगी आपने पिता के साथ सुपर 30 में पढ़ने आई थी और एक अभी की। स्कूल के समय से ही वह अपने पिता को सड़क के किनारे मैगज़ीन और अख़बार बेचने में मदद किया करती थी। जब पिता थक जाते या खाना खाने घर जाते तब शिवांगी ही पूरी जिम्मेवारी संभालती थी। लेकिन उसे जब भी समय मिलता पढ़ना वह नहीं भूलती थी। शिवांगी उत्तर-प्रदेश के एक छोटे सी जगह डेहा (कानपुर से कोई 60 किलोमीटर दूर) के सरकारी स्कूल से इंटर तक की पढ़ाई पूरी कर चुकी थी। एक दिन उसने अख़बार में सुपर 30 के बारे में पढ़ा और फिर मेरे पास आ गई।
सुपर 30 में रहने के दरमियान मेरे परिवार से काफी घुल-मिल गयी थी शिवांगी। मेरे माताजी को वह दादी कह कर बुलाती थी और हमलोग उसे बच्ची कहा करते थे। कभी माताजी की तबीयत ख़राब होती तब साथ ही सो जाया करती थी। आई. आई. टी. का रिजल्ट आ चुका था और वह आई. आई. टी. रूरकी जाने की तैयारी कर रही थी। उसके आँखों में आसू थे और मेरे परिवार की सभी महिलाएं भी रो रहीं थी, जैसे लग रहा था कि घर से कोई बेटी विदा हो रही हो। उसके पिता ने जाते-जाते कहा था कि लोग सपने देखा करते हैं और कभी-कभी उनके सपने पूरे भी हो जाया करते हैं। लेकिन मैंने तो कभी इतना बड़ा सपना भी नहीं देखा था।
आज भी शिवांगी मेरे घर के सभी सदस्यों से बात करते रहती है। अभी जैसे ही उसके नौकरी लग जाने की खबर हमलोगों को मिली मेरे पूरे घर में ख़ुशी की लहर सी दौड़ गयी। सबसे ज्यादा मेरी माँ खुश हैं और उनके लिए आखों में आंसू रोक पाना मुश्किल हो रहा है। उन्होंने बस इतना ही कहा कि अगले जनम में मुझे फिर से बिटिया कीजियो।’
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लड़कियां देश बदल रही है और अपने हालात भी। लड़कियां आज मनचलों का डटकर सामना कर रही हैं ये वहीं मनचले है जिनसे डरकर वो कभी नीची निगाह किए चुपचाप आंखों में आंसू लिए निकल जाती थी। आज उन्हीं मनचलों को उनकी आंखों में देखकर डर लगने लगता है। खैर हम बात यहां पर दबंग लड़कियों की नहीं कर रहे है। हम बात कर रहे है एक ऐसी लड़की की जो अपने हालातों से कभी नहीं हारी।
देश में गांव और शहर की कई लड़कियां पढ़ाई बीच में ही छोड़ देती है। कारण होता है कि स्कूल दूर है, पढ़ाई के लिए पैसे नहीं है या घरवालें पढ़ा नहीं रहे है। लेकिन जिस लड़की को पढ़ना होता है उसकी भी पढ़ाई अगर इन कारणों से बंद हो जाए तो उस लड़की के जीवन के लिए ये सबसे खराब बात होती है। इस बात को वो ज़िन्दगीभर भुला नहीं पाती।
अपनी ज़िन्दगी के कठिन हालातों से निपटने वाली इस लड़की है यूपी की शिवांगी। शिवांगी कानपुर से 60 किलोमीटर दूर देहा गांव की लड़की हैं और अभी नौकरी कर रही है। अब आप कहेंगे कि इसमें क्या ख़ास बात है हर कोई नौकरी करता हैं। तो हम आपको बता देते है कि इस लड़की मे क्या ख़ास बात हैं। 
दरअसल इस लड़की की कहानी को ‘सुपर 30’ के संस्थापक आनंद कुमार ने अपने फेसबुक पेज पर शेयर किया है। ये लड़की अपने पिता के साथ न्यूज़पेपर और मैग्जीन बेचा करती थी। इसके साथ ही वह सरकारी स्कूल से पढ़ाई भी कर रही थी। वह घर के काम भी संभालती थी। लेकिन इन सबसे जब भी उसे समय मिलता वो अपनी पढ़ाई करती थी।
एक दिन शिवांगी ने आनंद कुमार के सुपर 30 के बारे में पढ़ा। कुमार गरीब घर के छात्रों को आईआईटी पास कराने के लिए कोचिंग देते हैं। आनंद कुमार के बारे में पढ़ने के बाद शिवांगी अपने पापा के साथ उनसे मिलने गई। वहां पर शिवांगी का सिलेक्शन सुपर 30 में हो गया। इसके बाद शिवांगी ने आईआईटी पास किया और अब वे जॉब कर रही है।
शिवांगी की इस कहानी को शेयर करने के बाद इस पर जबरदस्त रिस्पॉन्स मिला है। उनकी इस पोस्ट को 9 हजार से ज़्यादा लोगों ने लाइक किया वहीं 1000 से ज़्यादा लोगों ने शेयर किया है। कमेंट में भी सभी ने इस लड़की की तारीफ की। इस पोस्ट पर आनंद कुमार ने लड़की के दो फोटो पोस्ट किए है। साथ ही अपना अनुभव भी साझा किया है।
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ये दो तस्वीरों की एक ही कहानी है। ये तस्वीरें आईना भी हैं और अश्क भी। इनमे कल भी है और आज भी। सुर भी साज भी। इन तस्वीरों में बीते कल की ख़ामोशी है और आज की बुलंदी भी। ये दोनों तस्वीरें मेरी शिष्या शिवांगी की है। एक उस समय कि जब शिवांगी आपने पिता के साथ सुपर 30 में पढ़ने आई थी और एक अभी की। स्कूल के समय से ही वह अपने पिता को सड़क के किनारे मैगज़ीन और अख़बार बेचने में मदद किया करती थी। जब पिता थक जाते या खाना खाने घर जाते तब शिवांगी ही पूरी जिम्मेवारी संभालती थी। लेकिन उसे जब भी समय मिलता पढ़ना वह नहीं भूलती थी। शिवांगी उत्तर-प्रदेश के एक छोटे सी जगह डेहा (कानपुर से कोई 60 किलोमीटर दूर) के सरकारी स्कूल से इंटर तक की पढ़ाई पूरी कर चुकी थी। एक दिन उसने अख़बार में सुपर 30 के बारे में पढ़ा और फिर मेरे पास आ गई।
सुपर 30 में रहने के दरमियान मेरे परिवार से काफी घुल-मिल गयी थी शिवांगी। मेरे माताजी को वह दादी कह कर बुलाती थी और हमलोग उसे बच्ची कहा करते थे। कभी माताजी की तबीयत ख़राब होती तब साथ ही सो जाया करती थी। आई. आई. टी. का रिजल्ट आ चुका था और वह आई. आई. टी. रूरकी जाने की तैयारी कर रही थी। उसके आँखों में आसू थे और मेरे परिवार की सभी महिलाएं भी रो रहीं थी, जैसे लग रहा था कि घर से कोई बेटी विदा हो रही हो। उसके पिता ने जाते-जाते कहा था कि लोग सपने देखा करते हैं और कभी-कभी उनके सपने पूरे भी हो जाया करते हैं। लेकिन मैंने तो कभी इतना बड़ा सपना भी नहीं देखा था।
आज भी शिवांगी मेरे घर के सभी सदस्यों से बात करते रहती है। अभी जैसे ही उसके नौकरी लग जाने की खबर हमलोगों को मिली मेरे पूरे घर में ख़ुशी की लहर सी दौड़ गयी। सबसे ज्यादा मेरी माँ खुश हैं और उनके लिए आखों में आंसू रोक पाना मुश्किल हो रहा है। उन्होंने बस इतना ही कहा कि अगले जनम में मुझे फिर से बिटिया कीजियो।’

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