बुधवार, 31 मई 2017


अफसोस कि तुम लोग प्रियंका की टांगें ही देख सके!


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https://htesangam.wordpress.com/2017/05/31/%E0%A4%85%E0%A4%AB%E0%A4%B8%E0%A5%8B%E0%A4%B8-%E0%A4%95%E0%A4%BF-%E0%A4%A4%E0%A5%81%E0%A4%AE-%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%97-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A4%BE/
हम जब छोटे थे, तो मुंबई, बॉलिवुड के बारे में सुनकर ही रोमांचित हो जाते थे। लगता था कि कोई अलग ही दुनिया में होगा ये सब। हम छोटे शहर के बच्चे, युवा ऐसे ही होते हैं। सपने पालने वाले, ग्लैमर-व्लैमर को बस दूर से ही निहारने वाले। उस दुनिया में जाने के बारे में सोचना और किसी के साथ उस बारे में बात करने भर से ही शेख चिल्ली टाइप फीलिंग आने लगती है। लेकिन ऐसे ही एक छोटे शहर से आपकी और हमारी तरह दिखने वाली गेहुंए रंग की लड़की बॉलिवुड में जाती है, जगह बनाती है, हिट होती है और फिर देखते-देखते वह उस मुकाम पर पहुंच जाती है, जो छोटे शहर के लोगों के लिए किसी एक मिसाल की तरह है। प्रियंका चोपड़ा छोटे शहर के उन बच्चों और युवाओं के लिए अंधेरे में एक उजाले का नाम है।

आपको प्रियंका का हौसला देखना चाहिए, उस लड़की का संघर्ष देखना चाहिए, आज वह जिस मुकाम पर है उसे देखकर अपनी बेटी को या बहन को मोटिवेट करना चाहिए कि तुम्हें इस लड़की की तरह बनना है, जिसने अपने मां-बाप का सिर फख्र से ऊंचा किया। आपको देखना चाहिए कि कैसे प्रियंका किस तरह अपनी मां को पूरी दुनिया में, हॉलिवुड की बड़ी-बड़ी सिलेब्रिटीज़ से मिला रही हैं। मगर आपने देखा क्या, उसकी टांगें! आपने कुछ किया चाहे नहीं किया, मगर उसकी ड्रेस का मजाक जरूर उड़ाया।

आखिर क्या दिक्कत है प्रियंका की इस ड्रेस में? दिक्कत मोदीजी और भारत सरकार को नहीं है, फिर आप कौन होते हैं कपड़ों पर पंचायत बिठाने वाले? प्रियंका की ड्रेस से अगर मोदीजी या भारत सरकार असहज होती, तो प्रियंका को मिलने ही नहीं दिया जाता या ड्रेस कोड बताया जाता।
कुछ लोग दूसरे के उपर कीचड़ उछालने मे बहुत माहिर होते है ! ये लोग अपने अंदर झाँक कर नही देखते की ये कितने ईमानदार है !
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अगर आपको लगता है कि प्रियंका को कब-कैसे कपड़े पहनने हैं, इसकी समझ नहीं है तो यह तस्वीर देखिए। यह तब की है, जब प्रियंका पद्म अवॉर्ड लेने जा रही थीं।
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सिर्फ प्रियंका नहीं ऐसे लोग अपने आस-पास और अपने घर में ऐसे ही लड़कियों को टॉर्चर करते होंगे, मानसिक तौर पर। सोशल मीडिया पर इनके कॉमेंट देखकर ही इस टॉर्चर की भयावहता का अंदाजा लगाया जा सकता है।
यह प्रियंका के साथ ही नहीं हुआ है, इसकी शिकार बरेली से ही आने वाली दिशा पाटनी भी हो चुकी हैं, जिन्हें उनकी इस ड्रेस के लिए सोशल मीडिया पर बुरी तरह जलील किया गया था।
इसलिए हे! सोशल मीडिया पर चरित्र की सीख देने वालो, अगर आपको किसी महिला के कपड़ों से दिक्कत है तो उसे फेसबुक, ट्विटर, टीवी, सीडी, मोबाइल हर जगह से ब्लॉक मारो और बायकॉट करो, वैसे भी इसमें आप लोग पारंगत हैं।


मंगलवार, 30 मई 2017

…और संत का धैर्य देखकर वह लज्जित हो गया


उत्तर भारत में जो स्थान संत कबीर का है दक्षिण में वही स्थान संत तिरुवल्लुवर का है। वह भी कबीर की तरह ही कपड़ा बुनते और कर्मकांड व पाखंडों का विरोध करते थे। एक बार उन्होंने एक साड़ी बुनी और उसे बेचने के लिए बाजार में जा बैठे। एक व्यक्ति आया और तिरुवल्लुवर से साड़ी का दाम पूछा। संत ने साड़ी का दाम दो रुपए बताया। साड़ी खरीदने आए उस व्यक्ति ने साड़ी के दो टुकड़े कर दिए और संत से पूछा कि अब इन टुकड़े के दाम कितने हुए। संत तिरुवल्लुवर ने कहा कि एक-एक रुपया। अब उस व्यक्ति ने उन दोनों टुकड़ों के दो-दो टुकड़े कर दिए और पूछा कि अब ये टुकड़े कितने के हैं। संत तिरुवल्लुवर ने बिना अधीर होते हुए कहा कि आठ-आठ आने के। इसके बाद उस व्यक्ति ने उन चारों टुकड़ों के दो-दो टुकड़े कर दिए और फिर वही प्रश्न पूछा। संत तिरुवल्लुवर ने कहा कि चार-चार आने के। इस तरह से वह व्यक्ति तिरुवल्लुवर की बुनी साड़ी के टुकड़े पर टुकड़े करता गया और दाम पूछता गया। 
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संत तिरुवल्लुवर बिना नाराज हुए दाम बताते रहे। जब साड़ी तार-तार हो गई तो उस व्यक्ति ने कहा कि अब तो इसकी कोई कीमत ही नहीं रह गई, फिर भी मैं तुम्हें दो रुपये दे देता हूं। संत तिरुवल्लुवर ने कहा कि जब तुमने साड़ी ली ही नहीं तो कीमत किस बात की ? 
असीम धैर्य देखकर वह अत्यंत लज्जित हुआ और क्षमा मांगने लगा। संत शांत भाव से बोले, तुम मेरे अपराधी नहीं हो, इसलिए क्षमा करने का अधिकार भी मेरा नहीं है। इस साड़ी में कइयों की मेहनत थी जिसे तुमने तार-तार कर बेकार कर दिया। वे यहां हैं नहीं और तुम उन सबके पास तक पहुंच नहीं सकते माफी मांगने। इसलिए प्रायश्चित करना चाहते हो तो अपने मन से कोई ऐसा काम करो जिसमें बहुत सारे अनजान लोगों का हित हो।’

Free food feeding since 2013

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ये तस्वीर सच्ची है, और इसके पीछे की कहानी और भी खूबसूरत—-
भोपाल में एक शख्स है जो खुद ही लोगों की ‘भूख’ से लड़ रहा है. रोजाना करीब 300 लोगों को खाना खिलाते हैं. वो भी एकदम मुफ्त. ये वो कोई अभी से नहीं बल्कि 2013 से कर रहे हैं. ये शख्स हैं भोपाल के मकबूल अहमद. मकबूल ने 1 मई 2013 से भूखे लोगों को खाना खिलाने की शुरुआत की थी. मकबूल एक चाय की दुकान करते हैं. मकबूल का कहना है कि पहले वह अपनी चाय की दुकान से होने वाले कमाई से ही लोगों के खाने का इंतजाम करते थे. जब उनके पास पैसे कम पड़ते थे तो घर से भी पैसा लेते थे. उन्होंने अकेले ही गरीबों की भूख मिटाने का ज़िम्मा उठाया था. मगर आज उनके साथ कई लोग जुड़ चुके हैं और उनकी मदद करते हैं. लोग उन्हें पैसा देते हैं ताकि उनका ये नेक काम चलता रहे.
‘लंगर-ए-आम’ के नाम से उनकी रसोई चलती है. मकबूल मानते हैं कि अब इस रसोई में हजारों लोग भी आ जाएं तो यहां से भूखे पेट वापस नहीं जाएंगे. इसी तरह अगर सभी थोड़ा-थोड़ा दूसरों के लिए करेंगे तो देश में कोई इंसान भूखा नहीं सो पाएगा.उनके यहां जो खाना खाने आते हैं, उनमें दूसरी जगहों से काम की तलाश में आए लोग हैं. कुछ वो हैं जो मजदूरी करते हैं. ठेला लगाते हैं. भीख मांगने वाले भी यहां आकर अपना पेट भरते हैं और कहीं भी सो जाते हैं. इसके बदले मकबूल को मिलती हैं इन लोगों की दुआएं.

अब मकबूल इस काम को करने वाले अकेले नहीं है. उनका साथ स्थानीय लोग दे रहे हैं, क्योंकि मकबूल के पास इतना पैसा नहीं कि वो इतना खर्च कर सकें. लेकिन स्थानीय लोग चाहते हैं कि ये काम शुरू हुआ है तो बंद न हो इसलिए वो मकबूल की मदद करते हैं. इस रसोई में किसी को भी खाने की मना दी नहीं है कोई भी आकर खा सकता है.
उनका एक ही मकसद है कि कोई भूखा ना रहे। इस काम में पहले तो वो अकेले ही थे, लेकिन अब बड़ी संख्या में शहर के लोग भी उनकी मदद कर रहे हैं। भोपाल में मकबूल अहमद गरीबों के बीच जाना-पहचाना नाम है। मई 2013 में उन्होंने अपनी चाय की दुकान पर ही कुछ लोगों को खाना खिलाया और फिर ये काम हर रोज का हो गया। मकबूल जो चाय की दुकान पर कमाते लोगों को खाना खिला देते।
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तस्वीर

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मारा समाज भिखारियों को हिकारत की नजर से देखता है। शायद ही कोई इंसान भिखारियों की भावनाओं पर अपना एक मिनट भी खर्च करना चाहें। फटॉग्रफर #GMB_Akash की एक तस्वीर ने इस सोच को जैसे बदलकर रख दिया है। एक भिखारी और उसकी बेटी की जिंदगी के एक बेहद भावुक पल को कैद करने वाली उनकी एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो गई है। इस तस्वीर की अहमियत को समझने के लिए आपको इसके पीछे की कहानी जाननी होगी। हुआ यूं कि एक हादसे में कौसर हुसैन ने अपना दाहिना हाथ गंवा दिया। खुद का और परिवार का पेट पालने के लिए अब उनके पास कोई रोजगार नहीं बचा था, लिहाजा मजबूरी में वह भीख मांगने लगे। फिर एक दिन वह अपनी बेटी के लिए एक ड्रेस खरीदने दुकान पर गए, तो दुकानदार ने उन्हें लताड़ दिया। अपने पिता को इस तरह अपमानित होता देख हुसैन की बेटी की आंखें भीग गईं। उसने कहा कि अब उसे कोई ड्रेस नहीं चाहिए।इस घटना के 2 साल बाद हुसैन ने अपनी बेटी के लिए एक खूबसूरत पीले रंग की फ्रॉक खरीदी। नई फ्रॉक देख कर उनकी बेटी बहुत खुश हुई और उस पल को फटॉग्रफर जीएमबी आकाश ने अपने कैमरे में कैद कर लिया।

हुसैन की आपबीती:कल मैं अपनी बेटी के लिए 2 साल बाद एक नई ड्रेस खरीद सका। 2 साल पहले मैंने जब दुकानदार को 5 रुपए के 60 नोट दिए थे, तब मुझ पर चिल्लाते हुए उसने पूछा था कि क्या मैं एक भिखारी हूं? मेरी बेटी ने मेरा हाथ पकड़ा और रोते हुए दुकान से बाहर चलने को कहा। मेरे अपमान से दुखी होकर उसने कहा कि उसे कोई ड्रेस नहीं खरीदनी है। मैंने एक हाथ से उसके आंसू पोछे।हां, मैं एक भिखारी हूं। आज से 10 साल पहले मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि एक दिन लोगों से भीख मांगकर मुझे गुजारा करना होगा। मैं नाइट कोच पुल से गिर गया था और मरते-मरते बचा। मैं जिंदा तो बच गया, लेकिन विकलांग हो गया। मेरा छोटा बेटा मुझसे अक्सर पूछता है कि मेरा दूसरा हाथ कहां चला गया। मेरी बेटी सौम्या रोज मुझे खाना खिलाते हुए कहती है कि मैं जानती हूं कि एक हाथ से सारे काम करना कितना मुश्किल है।
2 साल बाद मेरी बेटी ने एक नई ड्रेस पहनी है, इसलिए आज मैं उसे कुछ देर के लिए अपने साथ बाहर खेलने के लिए ले आया। हो सकता है कि मुझे आज एक भी पैसा न मिले, लेकिन मैं अपनी बच्ची के साथ समय गुजारना चाहता था। मैंने पत्नी को बताए बिना अपने पड़ोसी से फोन उधार लिया। मेरी बेटी के पास कोई तस्वीर नहीं है और मैं चाहता हूं कि यह दिन उसके लिए यादगार बने। जिस दिन मेरे पास एक फोन होगा, मैं अपने बच्चों की खूब सारी तस्वीरें लूंगा। मैं अच्छी यादें बचाकर रखना चाहता हूं। बच्चों को स्कूल भेजना मेरे लिए बहुत मुश्किल है, फिर भी मैं उन्हें पढ़ा रहा हूं। कभी-कभी वे परीक्षा नहीं दे पाते क्योंकि उनके लिए फीस जमा करना मेरे लिए हमेशा संभव नहीं हो पाता। ऐसे समय में मेरे बच्चे बहुत उदास हो जाते हैं और मैं उनकी हिम्मत बढ़ाते हुए कहता हूं कि कभी-कभी हम परीक्षा देना छोड़ सकते हैं क्योंकि जिंदगी हर दिन हमारी सबसे बड़ी परीक्षा ले रही होती है।
अब मैं भीख मांगने जाऊंगा। मैं अपनी बेटी को ट्रैफिक सिग्नल पर साथ ले जाऊंगा, जहां वह मेरा इंतजार करेगी। मैं भीख मांगते हुए कुछ दूरी से उसे देखूंगा। मुझे उस समय बड़ी शर्म महसूस करता हूं जब वह मुझे लोगों के सामने अपना एक हाथ फैलाते हुए देखती है। चूंकि सड़क पर बड़ी-बड़ी गाड़ियां होती हैं, इसीलिए वह मुझे कभी अकेला नहीं छोड़ती। वह सोचती है कि दुर्घटना फिर से हो सकती है। उसे लगता है कि ये गाड़ियां मुझे कुचलते हुए मेरे ऊपर से निकल जाएंगी और मैं मर जाऊंगा।
जब भी मैं थोड़ा पैसा जमा कर लेता हूं, अपनी बेटी का हाथ पकड़कर घर वापस लौट जाता हूं। हम अपने तरीके से खरीदारी करते हैं और मेरी बेटी हमेशा थैला उठाती है। जब बारिश होती है, तो हमें साथ भीगना अच्छा लगता है। हमें अपने सपनों के बारे में बातें करना अच्छा लगता है। जिस दिन मुझे पैसा नहीं मिलता, उस दिन हम खामोशी के साथ घर आ जाते हैं। ऐसे वक्त में मेरा दिल करता हूं कि मर जाऊं, लेकिन रात को जब मेरे बच्चे मुझसे लिपटकर सो जाते हैं तो मुझे लगता है कि जिंदा रहना इतना बुरा भी नहीं है। ज्यादा बुरा तब लगता है जब मेरी बेटी सिग्नल पर सिर नीचे करके मेरा इंतजार करती है। भीख मांगते समय मैं उससे नजरें नहीं मिला सकता। आज का दिन कुछ अलग, आज मेरी बेटी बहुत खुश है। आज यह बाप केवल एक भिखारी नहीं है। आज मैं उसका बाप एक राजा हूं और वह मेरी राजकुमारी है।’😞😞😞😞

शनिवार, 13 मई 2017

सा करो अरिंवद केजरीवाल पहले वो 370 पेज वाला शिला दीक्षित वाले सुबूत पहले दिखाओ, ईवीएम होता रहेगा, इससे पहले की बिहार के शराबी चूहे उसे कुतर डालें

उसको ही तो चूहे कुतर के शराबी बने हैं ।

चमचा गिरी तालूए चाटने को मजबूर कर देती है ये 

RABADI TALKS TO LALU YADAV- FUNNY 


लालू की मृत्यु के कुछ समय बाद राबड़ी को बड़ी चिंता हुई कि हमार मरदवा के स्वर्ग में entry मिली या नहीं ?
राबड़ी ने एक आत्मा बुलान वाले से contact किया।
लालू की आत्मा बुलाई गई.
राबड़ी :-कइसन हैं आप? 
मरने का बाद कइसा फील 
कर रहे हैं ?
लालू : बहुतै अच्छा फील हो रहा है हो राबरी, न पालिटिक्स है, न चारा घोटाला का डर, न कोई साला मोदिया-सोदिया का भय,
साफ ए हवा है, हरा भरा खेतवा है,
सारा ए दिन सिर्फ खाना-सोना, खाना-सोन,
बड़ा ए मौज है हो ईहाँ
राबड़ी : चलो छठ माई की बड़ी किरपा से आप सही ए सलामत स्वरग पहूँच गए!!
लालू : अरे धत! काहे का स्वरग, 
हम तो हरियाणा में भैंसा का जनम लिया हूँ।