सोमवार, 10 अप्रैल 2017

सरकारों को भी नाच नचा रही शराब

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सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया आदेश के बाद जिस तरह उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, तमिलनाडु, राजस्थान, उत्तराखंड और हरियाणा से औरतों की अगुवाई में शराब विरोधी आंदोलन उठता दिख रहा है वह काफी लोगों को डराने लगा है। इसमें वह भी शामिल हैं जो मांसाहार और पश्चिमी प्रभाव वाले खुले प्यार के इजहार के विरोधी हैं, जो भारतीयता के नाम पर चीजों को सतयुग में ले जाना चाहते हैं। सीधे वह नहीं तो उनके समर्थन से बनी सरकारें जरूर शराबबंदी की दिशा में एक बड़ा कदम बन सकने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलीता लगाने में जुटी हैं।

कतराने का जुगाड़
वैसे यह खबर भी कम दिलचस्प नहीं है कि जिन सज्जन ने राजमार्गों के किनारे शराब के ठेके बंद कराने के लिए जनहित याचिका दी थी, खुद उन्हें भी अंदाजा न था कि इस चक्कर में मॉल, बियर बार या बड़े होटलों के पब भी आ जाएंगे। मीडिया में वह लगभग पछतावे की अवस्था में दिखाई दिए। पर इस फैसले पर हंगामा वाले अंदाज में दिखे वह लोग, जिनका धंधा प्रभावित हुआ। होटल और मॉल के प्रतिनिधि विभिन्न टीवी बहसों में शराब बिक्री पर रोक के अदालती फैसले पर बचाव की मुद्रा अपनाने की जगह यह जता रहे हैं कि वह पर्यटन व्यवसाय को बढ़ावा देने और निवेश करने आ रहे विदेशियों की सेवा के लिए इस धंधे में हैं जबकि सुप्रीम कोर्ट इसमें बाधक बन रहा है। बीच सड़क पर शराब बेचने की इजाजत नहीं होगी तो न पर्यटन चलेगा, न विदेशी निवेशक आएंगे।
राजमार्गों पर शराब की बिक्री से सड़क दुर्घटना बढ़ने के जिस तर्क को मानकर अदालत ने इतना बड़ा फैसला किया है वह अब कहीं चर्चा में नहीं है। शराब उत्पादकों की तरफ से भी लॉबीइंग जरूर शुरू हो गई होगी पर वह अभी खुलकर इस फैसले के विरोध में नहीं आए हैं। शराब के खुदरा व्यापारियों से भी तेज प्रतिक्रिया राज्य सरकारों की तरफ से आने लगी है। इस व्यवसाय में शराब बनाने या बेचने का जोखिम लेने की जगह बैठे-बैठे इस धंधे से सबसे ज्यादा कमाई करने में वही सबसे आगे हैं। वह शोर तो नहीं मचा रही हैं पर व्यापारियों और उत्पादकों की तुलना में उन्होंने ही सबसे पहले शराब के धंधे को बचाने और हाईवे पर शराब बिक्री रोकने के फैसले को बेअसर करने का जुगाड़ लगाना शुरू किया है।

पहल राजस्थान की बीजेपी सरकार ने की। फैसला आने के साथ ही उसने राज्य के कई राजमार्गों या शहर से लगे हिस्सों को डिनोटिफाई करना शुरू कर दिया। मतलब यह कि उन सड़कों को या सड़क के उस हिस्से को राजमार्ग नहीं रहने दिया गया। तकनीकी रूप से वह अब स्थानीय या शहरी सड़क बन गए। न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी। जब राजमार्ग ही नहीं होगा तब सुप्रीम कोर्ट का फैसला कहां से लागू होगा। फिर नंबर आया पंजाब को नशे की गिरफ्त से मुक्त करने के चुनावी वायदे के साथ आई कांग्रेसी सरकार का। उसने भी शहरों से लगे राजमार्गों के करीब तीस किमी हिस्से को राजमार्ग की जगह शहरी सड़क बना दिया और शराब के मुख्य धंधे को बचा लिया।
खबर आई कि महाराष्ट्र सरकार भी यही तरीका अपनाने जा रही है। उसने ऐसी सड़कों की पहचान कर ली है जिस पर शराब की ज्यादा दुकानें हैं और जिनको डिनोटिफाई करने से मुख्य धंधा चलाने में कोई परेशानी नहीं होगी। हरियाणा की तकलीफ यह है कि उसकी ज्यादातर बड़ी सड़कें स्टेट हाईवे न होकर सीधे राष्ट्रीय राजमार्ग हैं। सो उसका काम ज्यादा मुश्किल है। लेकिन गरीबों की सबसे बड़ी हमदर्द ममता बनर्जी की पश्चिम बंगाल सरकार समेत कई राज्य सरकारें राजस्थान और पंजाब की देखादेखी यह आसान तरीका अपना रही हैं।
सिर्फ बिहार और गुजरात की सरकारें अभी चैन की बंसी बजा रही हैं क्योंकि उनके यहां शराबबंदी लागू है। इस अवसर का लाभ लेकर बिहार सरकार ने यह प्रचार अभियान भी छेड़ा है कि उसके यहां हुई शराबबंदी का उसके राजस्व पर कोई खास असर नहीं पड़ा है। उलटे, उसके यहां अपराध बहुत घटे हैं, दुर्घटनाएं कम हुई हैं और मिठाई-दूध-दही की खपत काफी बढ़ गई है। इसके विपरीत गोवा का दावा है कि उसके लोग खूब शराब के अभ्यस्त हैं, उनके लिए सड़क से 500 मीटर दूरी का प्रावधान कोई मायने नहीं रखता। मुख्यमंत्री इस सीमा को 200 मीटर करना चाहते हैं। सबसे ज्यादा खपत वाले कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्य इस फैसले को चुनौती देना चाहते हैं। तमिलनाडु ने तो पब, होटल, मॉल और बियर बार को फैसले से बाहर करने की अर्जी भी डाल दी है। सौभाग्य की बात है कि शराब के सीधे विज्ञापन पर रोक है वरना मीडिया भी इस जंग में कूद जाता।
शिखर पर सनसनी
केंद्र सरकार शुरू में शराब को राज्य का मुद्दा मान कर हाथ झाड़ती लग रही थी लेकिन अब वह भी सक्रिय हो गई है। इस मामले में वह प्रेजिडैंशल रेफरेंस का सहारा लेना चाहती है और इसपर अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी से सलाह ली जा रही है। जरूरी नहीं कि सुप्रीम कोर्ट इस पुनर्विचार के अवसर पर अपना फैसला पलट ही दे पर केंद्र सरकार के लिए जरूरी होगा कि उसके पास राज्यों से इसकी लिखित मांग आए। अनुच्छेद 143 के अनुसार राष्ट्रपति से ऐसा करने का निवेदन वह तभी कर सकती है। वैसे, मुकुल रोहतगी पहले ही तमिलनाडु सरकार की इस याचिका की पैरवी कर चुके हैं कि अदालत का आदेश सिर्फ ठेकों पर लागू होता है, होटल, मॉल, पब और बियर बार पर नहीं। तो फिर देखिए, आगे दारू खुद नाचती है या औरों को नचाती है।

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