नक्सल समस्या का निदान जरूरी
छत्तीसगढ. के नक्सल प्रभावित सुकमा जिले में माओवादियों ने िंचतागुफा इलाके में सी. आर. पी. एफ. जवानों पर हमला किया है जिसमें 26 जवान शहीद हो गए हैं और 6 जवान लापता हैं। इस घटना से एक बार फिर से छत्तीसगढ. में नक्सलियों की सक्रियता बढ.ने की आशंका बढ. गई। वहीं घटना से नक्सल समस्या के स्थायी हल की भी जरूरत महसूस हुई है। वैसे छत्तीसगढ. में नक्सल समस्या काफी जटिल बनी हुई है, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि छत्तीसगढ. के नक्सल प्रभावित सुकमा जिले में माओवादियों ने दो महीने में दूसरी बड.ी वारदात को अंजाम दिया है। पिछले महीने 11 मार्च को नक्सलियों ने सीआरपीएफ की 219वीं बटालियन को निशाना बनाया था जिसमें 12 जवान शहीद हो गए थे। ऐसे में अब जरूरी हो गया है कि छत्तीसगढ. में नक्सल समस्या का स्थायी हल निकाला जाए। सोमवार की घटना ने एक बार फिर से सोचने पर मजबूर कर दिया है कि ऐसी कौन सी वजह हैं कि नक्सल समस्या दिन प्रतिदिन विकट होती जा रही है? दरअसल नक्सल समस्या का हल नहीं निकलने के पीछे दो वजहें दिखती हैं। एक तो यह कि राजनीतिक दलों में इस बात पर सहमति नहीं है कि ये समस्या सामाजिक, आर्थिक समस्या है या कानून व्यवस्था से जुड.ी समस्या है। इस सवाल पर राजनीतिक पार्टियों के बीच विवाद है। पार्टियों के भीतर जरूरी है कि इस पर एक न्यूनतम सहमति बने। ऐसा होने से कम से कम आदिवासियों को राहत मिलेगी जो हर हाल में पिस रहे हैं। दूसरा सवाल इसके अर्थशास्त्र का है। नक्सल प्रभावित हर जिले को केंद्र और राज्य सरकार इतना पैसा देती है कि अगर उसे पूरी तरह खर्च किया जाए तो जिलों की तस्वीर बदल जाए ,लेकिन आश्चर्य है कि इतने पैसों के बावजूद बस्तर की बहुसंख्य आबादी बिना बिजली और शौचालय के हैं। अस्पताल जाने के लिए लोगों को मिलों दूर तक चल कर जाना पड.ता है और लोग दवाओं के लिए नक्सलियों पर अभी-भी निर्भर हैं।
कहां क्या खर्च हो रहा है? इसका कोई हिसाब नहीं, क्योंकि जहां पैसे कथित तौर पर खर्च हो रहे हैं वहां तो पुलिस भी नहीं जा पाती। जाहिर है कि ये पैसा नेता,अफ.सर और ठेकेदारों की तिकड.ी बांट कर खा रही है। इस पैसे में से एक बड.ा हिस्सा नक्सलियों को जाता है। हर अफ.सर उनको रंगदारी टैक्स की तरह देता है। यहां तक पुलिस के लोग भी उन्हें गोलियां आदि देते हैं। व्यापारियों से नक्सली भी पैसा वसूलते हैं और अफसर भी। ऐसे में जाहिर है इस अर्थशास्त्र का तोड. निकले और जवाबदेही तय हो तो शायद कोई रास्ता निकले। पैसा सही जगह खर्च हो और संतुलित और समान विकास हो, जिसके अभाव में नक्सलवाद को तेजी से पनपने का मौका मिल रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी सरकार की कामयाबी का ढिढोरा पीट रहे हैं, अब उनकी परीक्षा का सही समय है। प्रधानमंत्री मोदी को देश की नक्सलवाद जैसी आंतरिक समस्या के समाधान के लिए अपना 56 इंच का सीना तानकर खड! हो जाना चाहिए। |
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